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भगवान परशुराम द्वारा द्दुष्ट क्षत्रियों का संहार (भगवान परशुराम भाग - २) Lord Parashurama Part 02

Sunday 5 August 2012

भगवान परशुराम द्वारा द्दुष्ट क्षत्रियों का २१ बार संहार

महिष्मती नगर के राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे | सहस्त्रार्जुन का वास्तवीक नाम अर्जुन था, इसने घोर तपशया कर दत्तत्राई को प्रशन्न करके १००० हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया था, तभी से इसका नाम अर्जुन से सहस्त्रार्जुन पड़ा | इसे सहस्त्राबाहू और राजा कार्तवीर्य पुत्र होने के कारण कार्तेयवीर भी कहा जाता है |

कहा जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में चूर होकर धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चूका था | उसके अत्याचार व अनाचार से जनता त्रस्त हो चुकी थी | वेद - पुराण और धार्मिक ग्रंथों को मिथ्या बताकर ब्राह्मण का अपमान करना, ऋषियों के आश्रम को नष्ट करना, उनका अकारण वध करना, निरीह प्रजा पर निरंतर अत्याचार करना, यहाँ तक की उसने अपने मनोरंजन के लिए मद में चूर होकर अबला स्त्रियों के सतीत्व को भी नष्ट करना शुरू कर दिया था |

एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ झाड - जंगलों से पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा | महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन को आश्रम का मेहमान समझकर स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी | कहते हैं ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इन्द्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक अदभुत गाय थी | महर्षि ने उस गाय के मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते पूरी सेना के भोजन का प्रबंध कर दिया | कामधेनु गाय के अदभुत गुणों से प्रभावित होकर सहस्त्रार्जुन के मन में भीतर ही भीतर लालच समां चूका था | कामधेनु गाय को पाने की उसकी लालसा जाग चुकी थी | महर्षि जमदग्नि के समक्ष उसने कामधेनु गाय को पाने की अपनी लालसा जाहिर की | सहस्त्रार्जुन को महर्षि ने कामधेनु के विषय में सिर्फ यह कह कर टाल दिया की वह आश्रम के प्रबंधन और ऋषि कुल के जीवन के भरण - पोषण का एकमात्र साधन है | जमदग्नि ऋषि की बात सुनकर सहस्त्रार्जुन क्रोधित हो उठा, उसे लगा यह राजा का अपमान है तथा प्रजा उसका अपमान कैसे कर सकती है | उसने क्रोध के आवेश में आकार महर्षि जमदग्नि के आश्रम को तहस नहस कर दिया, पूरी तरह से उजाड़ कर रख दिया ऋषि आश्रम को और कामधेनु को जबर्दस्ती अपने साथ ले जाने लगा | वह क्रोधावाश दिव्य गुणों से संपन्न कामधेनु की अलौकिक शक्ति को भूल चूका था, जिसका परिणाम उसे तुरंत ही मिल गया, कामधेनु दुष्ट सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई और उसको अपने महल खाली हाँथ लौटना पड़ा |

जब परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तब उनकी माता रेणुका ने विस्तारपूर्वक सारी बातें बताई | परशुराम क्रोध के आवेश में आग बबूला होकर दुराचारी सहस्त्राअर्जुन और उसकी पूरी सेना को नाश करने का संकल्प लेकर महिष्मती नगर पहुंचे | वहाँ सहस्त्रार्जुन और परशुराम के बीच घोर युद्ध हुआ | भृगुकुल शिरोमणि परशुराम ने अपने दिव्य परशु से दुष्ट अत्याचारी सहस्त्राबाहू अर्जुन की हजारों भुजाओं को काटते हुए उसका धड़ सर से अलग करके उसका वध कर डाला | जब महर्षि जमदग्नि को योगशक्ति से सहस्त्रार्जुन वध की बात का ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पुत्र परशुराम को प्रायश्चित करने का आदेश दिया | कहते हैं पितृभक्त परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि ऋषि के आदेश का धर्मपूर्वक पालन किया |

भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या किया करते थे | एक बार जब भगवान परशुराम अपने तपस्या में महेंद्र पर्वत पर लीन थे तब मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने सहयोगी क्षत्रियों की मदद से तपस्यारत महर्षि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनका वध कर दिया | सहस्त्रार्जुन पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों का वध करते हुए, आश्रम को जला डाला | माता रेणुका ने सहायतावश पुत्र परशुराम को विलाप स्वर में पुकारा | जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो पिता का कटा हुआ सिर और माता को विलाप करते देखा | माता रेणुका ने महर्षि के वियोग में विलाप करते हुए अपने छाती पर २१ बार प्रहार किया और सतीत्व को प्राप्त हो गईं | माता - पिता के अंतिम संस्कार के पश्चात्, अपने पिता के वध और माता की मृत्यु से क्रुद्ध परशुराम ने शपथ ली कि वह हैहयवंश का सर्वनाश करते हुए समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर देंगे | पुराणों में उल्लेख है कि भगवान परशुराम ने २१ बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करके उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर को भर कर अपने संकल्प को पूरा किया | कहा जाता है की महर्षि ऋचीक ने स्वयं प्रकट होकर भगवान परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया था तब जाकर किसी तरह क्षत्रियों का विनाश भूलोक पर रुका | तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपने पितरों के श्राद्ध क्रिया की एवं उनके आज्ञानुसार अश्वमेध और विश्वजीत यज्ञ किया |

नोट: इतिहास ने दुष्ट दुराचारिओं के द्वारा किये गए अन्याय और अत्याचार के कई पन्ने अपने अंदर संजोग कर रखा है | उदहारण में भगवान परशुराम ने जिस तरह अपने पुरुषार्थ और पराक्रम का परिचय देते हुए दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अंत जगत के कल्याण के लिए किया, वह एक लौकिक सन्देश था समाज के अत्याचारी और दुष्ट पापियों के लिए | हर व्यक्ति को निडर होकर अन्याय और दुराचारियों के खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहिए, किन्तु निःस्वार्थ भाव से और उद्देश्य साथर्क होना चाहिए |

भगवान परशुराम भाग: पितृ भक्त परशुराम (लेखन में है)

- संतोष कुमार (लेखक)

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